Wednesday, December 23, 2015

एक, दो दिल में नै पांच कलमा याद नै / पंज तन को जो पाया नै पाक महम्मद के तैं  " एक, दो "
कलिमे से दिल धोया नै / दीद से तू पाया नै / इल्लिल्ला से मिल्या नै रे / ईद घर में आज नै " एक, दो "
कालमे का कल क्या कते गमारा पूछते  कालमे में ज्योत है कते दिल टिका नै देखते  " एक, दो "
मन के दीद से देख्याने / दीद से तू पाया नै / दीद मतलब जान्यानैरे दिने रसूल कु पाया नै " एक, दो "
पहला पाया भुलगया माया बुरखा में मिलगया / इज़राइल तो आगया  महम्मद को भुलगया " एक, दो "

Explanation:

अल्लाह की तौहीद ( एक ) और मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रिसालत के बारे में एक दो भी दिलमें न समझने वाले, पाँच कलिमोंके मतलब याद न रखने वाले और पाक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि-व-सल्लम के पंजतन और उनके सिल्सिलेको न पाने वाले जब मौत आजायेगी तब क्या जवाब देंगे ?

"ला इलाहाइल्लिल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" वाले पाक कलमे से दिल को न धोने वाले अंतर्दृष्टि से  अल्लाह की कुर्बियत न पाने वाले सच्चाई जो है के अल्लाह के सीवा कोई माबूद नहीँ  है, और इसको समझनेकेलिए इल्लिल्लाह को जो दिलसे नहीं मिलेहों  उनको ख़ुशी और आत्मा शांति नहीं मिलेगी.

गमारे में सोरहे  नव ज़ात शिशु को देखते ही हम सब को कलमा-ए-तय्यबा की  सृष्टि पूर्व प्राचीनता याद आनी चाहिए क्योंकि कलमा तो विश्र्व आविर्भाव से भी प्राचीन है और कलमा में नूरेमुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का नूर ही तो है ! दीद माने दिलकी आँख, इस दीद से रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के  दीन को  देखनेकेलिये नुरे मुहम्मद का नूर पाना आवश्यक है .

सब का पहला पाया जो आलमे-अरवाह है जिस से निकलके  जमीन पे आनेसे  पहले खुदा से किये हुए वादे को भूलकर मायावी दुनियां के मायावि बुरखा/ चादर में लिपट कर / झुलझ कर मुहम्मद को भूलजाएँ तो मौत के बाद बड़ा बुरा हाल होगा इसलिए ला इलाहाइल्लिल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह याने कलिमेसे दिल को धोकर दिलके आँख से अल्लाह की तौहीद को समझो .  

No comments:

Post a Comment